बुधवार, 3 जुलाई 2024

एक होमवर्क ऐसा भी .......

चेन्नई के एक स्कूल ने अपने बच्चों को छुट्टियों का जो एसाइनमेंट दिया वो पूरी दुनिया में वायरल हो रहा है। कारण बस इतना कि उसे बड़े सोच समझकर बनाया गया है। इसे पढ़कर अहसास होता है कि हम वास्तव में कहां आ पहुंचे हैं और अपने बच्चों को क्या दे रहे हैं। अन्नाई वायलेट मैट्रीकुलेशन एंड हायर सेकेंडरी स्कूल ने बच्चों के लिए नहीं बल्कि पेरेंट्स के लिए होमवर्क दिया है, जिसे हर एक पेरेंट को पढ़ना चाहिए।

उन्होंने लिखा:-

◆ पिछले 10 महीने आपके बच्चों की देखभाल करने में हमें अच्छा लगा। आपने गौर किया होगा कि उन्हें स्कूल आना बहुत अच्छा लगता है। अगले दो महीने उनके प्राकृतिक संरक्षक यानी आप उनके साथ छुट्टियां बिताएंगे। हम आपको कुछ टिप्स दे रहे हैं जिससे ये समय उनके लिए उपयोगी और खुशनुमा साबित हो।

◆- अपने बच्चों के साथ कम से कम दो बार खाना जरूर खाएं। उन्हें किसानों के महत्व और उनके कठिन परिश्रम के बारे में बताएं। और उन्हें बताएं कि उपना खाना बेकार न करें।

◆- खाने के बाद उन्हें अपनी प्लेटें खुद धोने दें। इस तरह के कामों से बच्चे मेहनत की कीमत समझेंगे।

◆- उन्हें अपने साथ खाना बनाने में मदद करने दें। उन्हें उनके लिए सब्जी या फिर सलाद बनाने दें।

◆- तीन पड़ोसियों के घर जाएं. उनके बारे में और जानें और घनिष्ठता बढ़ाएं।

◆- दादा-दादी/ नाना-नानी के घर जाएं और उन्हें बच्चों के साथ घुलने मिलने दें। उनका प्यार और भावनात्मक सहारा आपके बच्चों के लिए बहुत आवश्यक है। उनके साथ फ़ोटो लेवें।

◆- उन्हें अपने काम करने की जगह पर लेकर जाएं जिससे वो समझ सकें कि आप परिवार के लिए कितनी मेहनत करते हैं।

◆- किसी भी स्थानीय त्योहार या स्थानीय बाजार को मिस न करें।

◆- अपने बच्चों को किचन गार्डन बनाने के लिए बीज बोने के लिए प्रेरित करें। पेड़ पौधों के बारे में जानकारी होना भी आपके बच्चे के विकास के लिए जरूरी है।

◆- अपने बचपन और अपने परिवार के इतिहास के बारे में बच्चों को बताएं।

◆- अपने बच्चों का बाहर जाकर खेलने दें, चोट लगने दें, गंदा होने दें। कभी कभार गिरना और दर्द सहना उनके लिए अच्छा है। सोफे के कुशन जैसी आराम की जिंदगी आपके बच्चों को आलसी बना देगी।

◆- उन्हें कोई पालतू जावनर जैसे कुत्ता, बिल्ली, चिड़िया या मछली पालने दें।

◆- उन्हें कुछ लोक गीत सुनाएं।
◆- अपने बच्चों के लिए रंग बिरंगी तस्वीरों वाली कुछ कहानी की किताबें लेकर आएं।

◆- अपने बच्चों को टीवी, मोबाइल फोन, कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से दूर रखें। इन सबके लिए तो उनका पूरा जीवन पड़ा है।

◆- उन्हें चॉकलेट्स, जैली, क्रीम केक, चिप्स, गैस वाले पेय पदार्थ और पफ्स जैसे बेकरी प्रोडक्ट्स और समोसे जैसे तले हुए खाद्य पदार्थ देने से बचें।

◆- अपने बच्चों की आंखों में देखें और ईश्वर को धन्यवाद दें कि उन्होंने इतना अच्छा उपहार आपको दिया। अब से आने वाले कुछ सालों में वो नई ऊंचाइयों पर होंगे। माता-पिता होने के नाते ये जरूरी है कि आप अपना समय बच्चों को दें।

अगर आप माता-पिता हैं तो इसे पढ़कर आपकी आंखें नम अवश्य हुई होंगी और आखें अगर नम हैं तो कारण स्पष्ट है कि आपके बच्चे वास्तव में इन सब चीजों से दूर हैं। इस एसाइनमेंट में लिखा एक-एक शब्द ये बता रहा है कि जब हम छोटे थे तो ये सब बातें हमारी जीवन शैली का हिस्सा थीं, जिसके साथ हम बड़े हुए हैं, लेकिन आज हमारे ही बच्चे इन सब चीजों से दूर हैं, जिसकी वजह हम खुद हैं। आज के कठिन समय में बच्चों के साथ ऐसे कार्य करे जिससे उनके अंदर त्याग, समर्पण, सेवा परोपकार की भावना जागृत हो।
🙏धन्यवाद🙏

रविवार, 2 जून 2024

पूजा अर्चना के समय वस्त्र विधान

आजकल एक प्रथा चल पड़ी है कि पूजन आरंभ होते ही रूमाल या तौलिया निकाल कर सर पर रख लेते है … जबकि पूजा में सिर ढकने को शास्त्र निषेध करता है।शौच के समय ही सिर ढकने को कहा गया है। प्रणाम करते समय,जप व देव पूजा में सिर खुला रखें। तभी शास्त्रोचित फल प्राप्त होगा।

शास्त्र प्रमाण:-
उष्णीषो कञ्चुकी चात्र मुक्तकेशी गलावृतः ।
 प्रलपन् कम्पनश्चैव तत्कृतो निष्फलो जपः ॥
अर्थात् -
पगड़ी पहनकर, कुर्ता पहनकर, नग्न होकर, शिखा खोलकर, कण्ठको वस्त्रसे लपेटकर, बोलते हुए, और काँपते हुए जो जप किया जाता है, वह निष्फल होता है ।'

शिर: प्रावृत्य कण्ठं वा मुक्तकच्छशिखोऽपि वा |
अकृत्वा पादयोः शौचमाचांतोऽप्यशुचिर्भवेत् ||
                   ( -कुर्म पुराण,अ.13,श्लोक 9)
अर्थात्-- सिर या कण्ठ को ढककर ,शिखा तथा कच्छ(लांग/पिछोटा) खुलने पर,बिना पैर धोये आचमन करने पर भी अशुद्ध रहता हैं(अर्थात् पहले सिर व कण्ठ पर से वस्त्र हटाये,शिखा व कच्छ बांधे, फिर पाँवों को धोना चाहिए, फिर आचमन करने के बाद व्यक्ति शुद्ध(देवयजन योग्य) होता है)।

सोपानस्को जलस्थो वा नोष्णीषी वाचमेद् बुधः।
                  -कुर्म पुराण,अ.13,श्लोक 10अर्ध।
अर्थात्-- बुध्दिमान् व्यक्ति को जूता पहनें हुए,जल में स्थित होने पर,सिर पर पगड़ी इत्यादि धारणकर आचमन नहीं करना चाहिए ।

शिरः प्रावृत्य वस्त्रोण ध्यानं नैव प्रशस्यते।-(कर्मठगुरूः)
अर्थात्-- वस्त्र से सिर ढककर भगवान का ध्यान नहीं करना चाहिए ।

उष्णीशी कञ्चुकी नग्नो मुक्तकेशो गणावृत।
अपवित्रकरोऽशुद्धः प्रलपन्न जपेत् क्वचित् ॥-
                              (शब्द कल्पद्रुम  )
अर्थात्-- सिर ढककर,सिला वस्त्र धारण कर,बिना कच्छ के,शिखा खुलीं होने पर ,गले के वस्त्र लपेटकर । 
अपवित्र हाथों से,अपवित्र अवस्था में और बोलते हुए कभी जप नहीं करना चाहिए ।।

न जल्पंश्च न प्रावृतशिरास्तथा।-योगी याज्ञवल्क्य
अर्थात्-- न वार्ता करते हुए और न सिर ढककर।

अपवित्रकरो नग्नः शिरसि प्रावृतोऽपि वा । 
प्रलपन् प्रजपेद्यावत्तावत् निष्फलमुच्यते  ।।          (रामार्च्चनचन्द्रिकायाम्)
अर्थात्-- अपवित्र हाथों से,बिना कच्छ के,सिर ढककर जपादि कर्म जैसे किये जाते हैं, वैसे ही निष्फल होते जाते हैं ।
शिव महापुराण उमा खण्ड अ.14-- सिर पर पगड़ी रखकर,कुर्ता पहनकर ,नंगा होकर,बाल खोलकर ,गले के कपड़ा लपेटकर,अशुद्ध हाथ लेकर,सम्पूर्ण

शनिवार, 18 मई 2024

प्रणाम का विज्ञान - एक विमर्श

अपने से बड़े को प्रणाम कैसे करें ? आइए, इस पर विचार करते हैं।
१- साष्टाङ्ग -- 
जानुभ्यां च तथा पद्भ्यां पाणिभ्यामुरसा धिया । 
शिरसा वचसा दृष्ट्या प्रणामोsष्टाङ्ग ईरितः ॥ 
       जानु, पैर, हाथ, वक्ष, शिर, वाणी, दृष्टि और बुद्धि से किया प्रणाम साष्टाङ्ग प्रणाम कहा जाता है ॥ 
 २ - दोनों हाथों से -
व्यत्यस्त पाणिना कार्यमुपसंग्रहणे गुरु: । 
सव्येन सव्य:स्पृष्टव्यो दक्षिणेन च दक्षिण: ।। 
अर्थात् बाएँ हाथ से बाएँ तथा दाएँ हाथ से दाएँ चरण का स्पर्श हो  । 
३- पितु समेत कहि कहि निज नामा । 
     लगे करन    सब     दंड प्रनामा ।।
●एक हाथ से प्रणाम निषेध--
जन्मप्रभृति यत्किञ्चित् सुकृतं समुपार्जितम् । 
तत्सर्वं निष्फलं याति एकहस्ताभिवादनात् ।। 
 जन्म से लेकर आज तक जोभी  पुण्य अर्जित किया है, एक हाथ से अभिवादन करने से वह सब निष्फल हो जाता है । 
 यह सदैव स्मरण रखना चाहिए ।
★अन्य निषेध --
१_दूरस्थं जलमध्यस्थं धावन्तं धनगर्वितम् । 
क्रोधवन्तं मदोन्मत्तं नमस्कारोsपि वर्जयेत् ॥ 
      दूरस्थित, जलके बीच, दौड़ते हुए, धनोन्मत्त, क्रोधयुक्त, नशे से पागल व्यक्ति को प्रणाम नहीं करना चाहिए ॥ 

२_ समित्पुष्पकुशाग्न्यम्बुमृदन्नाक्षतपाणिकः । 
जपं होमं च कुर्वाणो नाभिवाद्यो द्विजो भवेत् ॥ 
       अर्थात् पूजाकी तैयारी करते हुए तथा पूजादि नित्यकर्म करते समय ब्राह्मण को प्रणाम करने का निषेध है । निवृत्ति के पश्चात् प्रणाम करना चाहिए ॥

३_अपने समवर्ण ज्ञाति एवं बान्धवों में ज्ञानवृद्ध तथा वयोवृद्ध द्वारा प्रणाम स्वीकार नहीं करना चाहिए, इससे अपनी हानि होती  है । 

४- स्त्रियों के लिये साष्टाङ्ग प्रणाम वर्जित है  । वे बैठकर ही प्रणाम करें ।

**प्रणाम(साष्टाङ्ग)** 
जानुभ्यां च तथा पद्भ्यां पाणिभ्यामुरसा धिया । 
शिरसा वचसा दृष्ट्या प्रणामोsष्टाङ्ग ईरितः ॥ 
       जानु, पैर, हाथ, वक्ष, शिर, वाणी, दृष्टि और बुद्धि से किया प्रणाम साष्टाङ्ग प्रणाम कहा जाता है ॥ 
     परन्तु "वसुन्धरा न सहते कामिनीकुचमर्दनम्" सूत्र के अनुसार स्त्री द्वारा साष्टाङ्ग प्रणाम का निषेध है । अतः उसे बैठकर ही, परपुरुष को स्पर्श न करते हुए, प्रणाम करने का आदेश है ॥ 

५- गुरुपत्नी तु युवती नाभिवाद्येह पादयोः । 
कुर्वीत वन्दनं भूम्यामसावहमिति चाब्रुवन् ॥ 
       यदि गुरुपत्नी युवावस्था वाली हों तो उनके चरण छूकर प्रणाम नहीं करना चाहिए । 'मैं अमुक हूँ' ऐसा कहते हुए उनके सम्मुख पृथ्वी पर प्रणाम करना चाहिए ॥ 
 [मातृष्वसा मातुलानी श्वश्रूश्चाथ पितृष्वसा । 
सम्पूज्या गुरुपत्नीव समास्ता गुरुभार्यया ॥ 
 मौसी, मामी, सास और बुआ __ ये गुरुपत्नी के समान पूज्य हैं ॥ कूर्मपुराण एवं मनुस्मृति ॥]
       यहाँ कालिदास भी कहते हैं__ 'प्रतिबध्नाति हि श्रेयः पूज्यपूजाव्यतिक्रमः' अर्थात् पूज्यका असम्मान कल्याणकारी नहीं होता ॥ 
साभार
  ( आनन्द वर्द्धन दुबे, कन्नौज)

बुधवार, 28 फ़रवरी 2024

नाम रखने का विज्ञान - एक विश्लेषण

बच्चों का नाम रखने के बिषय में समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को न जाने हो क्या गया है? लगता है जैसे समाज पथभ्रष्ट एवं दिग्भ्रमित हो गया है. 
एक सज्जन ने अपने बच्चों से परिचय कराया, और बताया की पोती का नाम *अवीरा* रखा है, बड़ा ही यूनिक_नाम रखा है। 
यह पूछने पर कि इसका अर्थ क्या है, बे बोले कि बहादुर, ब्रेव, कॉन्फिडेंशियल। 

सुनते ही मेरा दिमाग चकरा गया। फिर बोले कृपा करके बताएं आपको कैसा लगा?  

मैंने कहा बन्धु अवीरा तो बहुत ही अशोभनीय नाम है नहीं रखना चाहिए.
उनको बताया कि..
1. जिस स्त्री के पुत्र और पति न हों. पुत्र और पतिरहित (स्त्री) 

2. स्वतंत्र (स्त्री), उसका नाम होता है अवीरा. जिसके बारे में शास्त्रों में लिखा गया है कि..
 *नास्ति वीरः पुत्त्रादिर्यस्याः  सा अवीरा* 

उन्होंने बच्ची के नाम का अर्थ सुना तो बेचारे मायूस हो गए,  बोले महोदय क्या करें अब तो स्कूल में भी यही नाम हैं बर्थ सर्टिफिकेट में भी यही नाम है। क्या करें?

आजकल लोग कुछ नया करने की ट्रेंड में कुछ भी अनर्गल करने लग गए हैं *जैसे कि* ...
--लड़की हो तो मियारा, शियारा, कियारा, नयारा, मायरा तो अल्मायरा आदि.. 
--लड़का हो तो वियान, कियान, गियान, केयांश, रेयांश आदि...

और तो और इन शब्दों के जब अर्थ पूछो तो  
दे गूगल ...  दे याहू ...

और उत्तर आएगा "इट मीन्स रे ऑफ लाइट" "इट मीन्स गॉड्स फेवरेट" "इट मीन्स ब्ला ब्ला"
नाम को यूनीक रखने के फैशन के दौर में एक सज्जन  ने अपनी गुड़िया का नाम रखा " *श्लेष्मा* ".

स्वभाविक था कि नाम सुनकर मैं सदमें जैसी अवस्था में था. 

सदमे से बाहर आने के लिए मन में विचार किया कि हो सकता है इन्होंने कुछ और बोला हो या इनको इस शब्द का अर्थ पता नहीं होगा तो मैं पूछ बैठा "अच्छा? श्लेष्मा! इसका अर्थ क्या होता है? 

तो महानुभाव नें बड़े ही कॉन्फिडेंस के साथ उत्तर दिया "श्लेष्मा" का अर्थ होता है "जिस पर मां की कृपा हो" मैं सर पकड़ कर 10 मिनट मौन बैठा रहा ! 

मेरे भाव देख कर उनको यह लग चुका था कि कुछ तो गड़बड़ कह दिया है तो पूछ बैठे. 

क्या हुआ मैंने कुछ ग़लत तो नहीं कह दिया? 

मैंने कहा बन्धु तुंरत प्रभाव से बच्ची का नाम बदलो क्योंकि  श्लेष्मा का अर्थ होता है "नाक का कचरा" उसके बाद जो होना था सो हुआ.

यही हालात है समाज के एक बहुत बड़े वर्ग का। 

फैशन के दौर में फैंसी,फटे और अधनंगे कपड़े पहनते पहनते अर्थहीन, अनर्थकारी, बेढंगे शब्द समुच्चयों का प्रयोग समाज अपने कुलदीपकों के नामकरण हेतु करने लगा है
अशास्त्रीय नाम न केवल सुनने में विचित्र लगता है, बालकों के व्यक्तित्व पर भी अपना विचित्र प्रभाव डालकर व्यक्तित्व को लुंज पुंज करता है - जो इसके तात्कालिक कुप्रभाव हैं.भाषा की संकरता और दरिद्रता इसका दूरस्थ कुप्रभाव है.

परंपरागत रूप से ,नाम रखनेकाअधिकार,दादा-दादी, बुआ, तथा गुरुओं का होता था या है. यह कर्म उनके लिए ही छोड़ देना हितकर है.

आप जब दादा दादी बनेंगे या बन गए है तब यह कर्तव्य ठीक प्रकार से निभा पाएँ उसके लिए आप अपनी मातृभाषा पर कितनी पकड़ रखते हैं अथवा उसपर पकड़ बनाने के लिए क्या कर रहे हैं, विचार अवश्य करें.
अन्यथा आने वाली पीढ़ियों में आपके परिवार में भी कोई "श्लेष्मा" हो सकती है, कोई भी अवीरा हो सकती है।

 *शास्त्रों में लिखा है* कि व्यक्ति का जैसा नाम है समाज में उसी प्रकार उसका सम्मान और उसका यश कीर्ति बढ़ाने में महत्वपूर्ण कारक होता  है. जैसे...

 *नामाखिलस्य व्यवहारहेतु: शुभावहं कर्मसु भाग्यहेतु:।* 
 *नाम्नैव कीर्तिं लभते मनुष्य-स्तत:  प्रशस्तं खलु नामकर्म।* 
--{संदर्भ-वीरमित्रोदय-संस्कार प्रकाश}

 *स्मृति संग्रह में* बताया गया है कि व्यवहार की सिद्धि आयु एवं ओज की वृद्धि के लिए श्रेष्ठ नाम होना चाहिए.
 *आयुर्वर्चो sभिवृद्धिश्च सिद्धिर्व्यवहृतेस्तथा ।* 
 *नामकर्मफलं त्वेतत्  समुद्दिष्टं मनीषिभि:।* 

--नाम कैसा हो,
नाम की संरचना कैसी हो इस विषय में ग्रह्यसूत्रों एवं स्मृतियों में विस्तार से प्रकाश डाला गया है पारस्करगृह्यसूत्र  1/7/23 में बताया गया है-
 *द्व्यक्षरं चतुरक्षरं वा घोषवदाद्यंतरस्थं।* 
 *दीर्घाभिनिष्ठानं कृतं कुर्यान्न तद्धितम्।।*  *अयुजाक्षरमाकारान्तम् स्त्रियै तद्धितम् ।।* 

इसका तात्पर्य यह है कि..
बालक का नाम दो या चारअक्षरयुक्त, पहला अक्षर घोष वर्ण युक्त, 
वर्ग का तीसरा चौथा पांचवा वर्ण, 
मध्य में अंतस्थ वर्ण, य र ल व आदिऔर नाम का अंतिम वर्ण दीर्घ एवं कृदन्त हो तद्धितान्त न हो।
तथा..
कन्या का नाम विषमवर्णी तीन या पांच अक्षर युक्त, दीर्घ आकारांत एवं तद्धितान्त होना चाहिए

 *धर्मसिंधु में चार प्रकार के नाम बताए गए हैं* ..

१ देवनाम
२ मासनाम 
३ नक्षत्रनाम 
४ व्यावहारिक नाम 

उनमें ऐसा भी जोर देकर कहा गया है कि   कुंडली के नाम को व्यवहार में बोलता नाम नहीं रखना चाहिए क्योंकि जो नक्षत्र नाम होता है उसको गुप्त रखना चाहिए क्योकि
यदि कोई हमारे ऊपर अभिचार कर्म मारण, मोहन, वशीकरण इत्यादि दुर्भावना से कार्य करना चाहता है तो उसके लिए नक्षत्र नाम की,यानी जन्म के समय के नक्षत्र अनुसार नाम की  आवश्यकता होती है,जबकि व्यवहार नाम पर तंत्र का असर नहीं होता इसीलिए कुंडली का जन्म नाम गुप्त होना चाहिए।

हमारे शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि बच्चे का नाम मंगल सूचक, आनंद सूचक, 
बल रक्षा और शासन क्षमता का सूचक ,ऐश्वर्य सूचक, पुष्टि युक्त  अथवा सेवा आदि गुणों से युक्त होना चाहिए।

शास्त्रीय नाम की हमारे सनातन धर्म में बहुत उपयोगिता है मनुष्य का जैसा नाम होता है वैसे ही गुण उसमें विद्यमान होते हैं या विकसित होने की संभावना प्रबल होती है. 

बच्चों का नाम लेकर पुकारने से उनके मन पर उस नाम का बहुत असर पड़ता है और प्रायः उसी के अनुरूप चलने का प्रयास भी होने लगता है 

इसीलिए नाम में यदि उदात्त भावना होती है तो बालकों में यश एवं भाग्य का अवश्य ही उदय संभव है।

हमारे धर्म में अधिकांश लोग अपने पुत्र पुत्रियों का नाम भगवान के नाम पर रखना शुभ समझते हैं ताकि इसी बहाने प्रभु नाम का उच्चारण भगवान के नाम का उच्चारण हो जाए।
 *भायं कुभायं अनख आलसहूं।* 
 *नाम जपत मंगल दिसि दसहूं॥* 

विडंबना यह है की आज पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण में नाम रखने का संस्कार मूल रूप से प्रायः समाप्त होता जा रहा है.  सयुंक्त परिवार में रहने कि प्रथा अब लगभग अंतिम साँसे ले रही है अन्यथा मुझे याद है कि घरों में नाम रखे जाने की भी एक खास रश्म होती थी जिसमे घर में दादा,दादी, बुआ अथवा उनकी अनुपस्थिति में घर का अन्य कोई वरिष्ठ, बच्चे को गोद में लेकर, श्री गणेश का स्मरण करते हुए, छोटी घंटी बजाते हुए,बच्चे के कान के पास अपना मुंह ले जाकर,उसका निर्धारित किया हुआ नाम पुकारते थे ताकि अपने नाम का पहला श्रोता बो बच्चा खुद रहे ( यह S.O.P. थोड़ी बहुत +/- के साथ लगभग सभी समाज में थी)
अब चूंकि घर में वरिष्ठों की उपस्थिति या दखलंदाज़ी ना के बराबर है और अगर है भी, तो भी, उनका सुझाया हुआ नाम, या मार्ग दर्शन को सुनता कौन है......

फिर भी अगर नई पीढ़ी में कोई आपकी सुन रहा है तो उसे ज़रूर बताएं कि नाम ऐसा रखना ठीक होता है जो सकारात्मक और अर्थपूर्ण हो,उल्ल्हास मय हो, आसानी से उच्चारित और लिखा जा सके,

ईश्वर और प्रकृति के विभिन्न सुंदर भावों का समावेश या प्रतिनिधित्व करने बाला हो आदि आदि..
इसी में भलाई है, इसी में कल्याण है।
 पोस्ट को पढ़ने के लिये आभार

मंगलवार, 2 जनवरी 2024

सर्वोदय विद्यालय नं०1, मोरी गेट, दिल्ली -6 की वार्षिक पत्रिका 'ई-उत्कर्ष' का तृतीय संस्करण (2023-24)

सर्वोदय विद्यालय नं०1, दिल्ली -110006 (आई.डी. 1207022) की वार्षिक पत्रिका 'ई-उत्कर्ष' का नवीनतम संस्करण। 
पत्रिका पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें।
आपकी टिप्पणियों और सुझावों का स्वागत है। 

मंगलवार, 19 दिसंबर 2023

परीक्षा पर चर्चा 2024 कार्यक्रम में सहभागिता के लिए छात्रों/अभिभावकों एवं शिक्षकों हेतु सूचना।

कक्षा 6 से 12 तक के छात्र/अभिभावक और शिक्षक परीक्षा पर चर्चा कार्यक्रम के अन्तर्गत अपने प्रश्न पूछें तथा प्रधानमंत्री जी के साथ कार्यक्रम में सम्मिलित होने का अवसर पायें।
लिंक 12 दिसम्बर से 12 जनवरी तक खुला है। 
सहभागिता हेतु यहां पर क्लिक करें
सहभागिता हेतु पहले Register Now पर जाकर पंजीकरण करें उसके बाद login पर जाएं।

पंजीकरण के बाद स्क्रीन शॉट अपनी कक्षा के समूह पर भेजें।

बुधवार, 25 अक्टूबर 2023

विद्यालय में प्रातःकालीन प्रार्थनाएं - सभी बच्चे याद करें।

विद्यालय के सभी छात्र इन प्रार्थनाओं को 30 अक्टूबर 2023 तक याद कर लेंगे। 

1

वन्दे मातरम् 

वन्दे मातरम्

सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम् 

शस्यश्मयामलां मातरम् ।

वन्दे मातरम्

शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीं 

फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीं 

सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीं 

सुखदां वरदां मातरम् ।। १ ।। 

वन्दे मातरम् ।


2

जन गण मन अधिनायक जय हे 

भारत भाग्य विधाता। 

पंजाब सिंध गुजरात मराठा

द्राविड़ उत्कल बंग। 

विंध्य हिमाचल यमुना गंगा 

उच्छल जलधि तरंग। 

तव शुभ नामे जागे 

तव शुभ आशीष मागे।

गाहे तव जयगाथा। 

जन गण मंगलदायक जय हे 

भारत भाग्य विधाता। 

जय हे, जय हे, जय हे 

जय जय जय जय हे॥

3

सुबह सबेरे लेकर तेरा नाम प्रभु,

करते हैं हम शुरू आज का काम प्रभु ।

सुबह सवेरे लेकर तेरा नाम प्रभु,

करते हैं हम शुरू आज का काम प्रभु ।

शुद्ध भाव से तेरा ध्यान लगाएं हम,

विद्या का वरदान तुम्हीं से पाए हम ।

शुद्ध भाव से तेरा ध्यान लगाएं हम,

विद्या का वरदान तुम्हीं से पाए हम ।

विद्या का वरदान तुम्हीं से पाए हम ।

तुम्ही से है आगाज़ तुम्हीं से अंजाम प्रभु,

करते है हम शुरू आज का काम प्रभु ।

सुबह सवेरे लेकर तेरा नाम प्रभु,

करते हैं हम शुरू आज का काम प्रभु ।

गुरुओं का सत्कार कभी ना भूले हम,

इतना बनें महान गगन को छू लें हम ।

गुरुओं का सत्कार कभी ना भूले हम,

इतना बनें महान गगन को छू लें हम ।

 इतना बनें महान गगन को छू लें हम ।

तुम्हीं से है हर सुबह तुम्ही से शाम प्रभु।

करते है हम शुरू आज का काम प्रभु ।

सुबह सवेरे लेकर तेरा नाम प्रभु,

करते हैं हम शुरू आज का काम प्रभु ।

सुबह सवेरे लेकर तेरा नाम प्रभु,

करते हैं हम शुरु आज का काम प्रभु।

4

तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो

तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो ।

तुम्ही हो बंधु, सखा तुम्ही हो ॥

तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो ।

तुम्ही हो बंधु, सखा तुम्ही हो ॥

तुम ही हो साथी, तुम ही सहारे ।

कोई ना अपना सिवा तुम्हारे ॥

तुम ही हो साथी, तुम ही सहारे ।

कोई ना अपना सिवा तुम्हारे ॥

तुम ही हो नईया, तुम ही खिवईया ।

तुम ही हो बंधु सखा तुम ही हो ॥

तुम ही हो माता, पिता तुम्ही हो ।

तुम ही हो बंधु, सखा तुम्ही हो ॥

जो खिल रहे हैं वो फूल हम हैं ।

तुम्हारे चरणों की धूल हम हैं ॥

जो खिल रहे हैं वो फूल हम हैं ।

तुम्हारे चरणों की धूल हम हैं ॥

दया की दृष्टि, सदा ही रखना ।

तुम ही हो बंधु सखा तुम्ही हो ॥

तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो ।

तुम्ही हो बंधु, सखा तुम्ही हो ॥ै

तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो ।

तुम्ही हो बंधु, सखा तुम्ही हो ॥

5

दया कर दान विद्या का

दया कर दान विद्या का,

हमें परमात्मा देना,

दया करना हमारी आत्मा में 

शुद्धता देना ।

हमारे ध्यान में आओ,

प्रभु आँखों में बस जाओ,

अँधेरे दिल में आकर के,

प्रभु ज्योति जगा देना ।

बहा दो ज्ञान की गंगा,

दिलों में प्रेम का सागर,

हमें आपस में मिल-जुल के,

प्रभु रहना सीखा देना ।

हमारा धर्म हो सेवा,

हमारा कर्म हो सेवा,

सदा ईमान हो सेवा,

व सेवक जन बना देना ।

वतन के वास्ते जीना,

वतन के वास्ते मरना,

वतन पर जाँ फिदा करना,

प्रभु हमको सीखा देना ।

दया कर दान विद्या का,

हमें परमात्मा देना,

दया करना हमारी आत्मा में,

शुद्धता देना ।

6

इतनी शक्ति हमें देना दाता,

मन का विश्वास कमजोर हो ना

हम चलें नेक रस्ते पे,

हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना

दूर अज्ञान के हो अँधेरे

तू हमें ज्ञान की रोशनी दे

हर बुराई से बच के रहें हम

जितनी भी दे भली ज़िन्दगी दे

बैर हो ना किसी का किसी से

भावना मन में बदले की हो ना

इतनी शक्ति हमें देना दाता,

मनका विश्वास कमजोर हो ना

हम चलें नेक रस्ते पे,

हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना

हम न सोचें हमें क्या मिला है

हम ये सोचें किया क्या है अर्पण

फूल खुशियों के बांटें सभी को

सबका जीवन ही बन जाए मधुबन

अपनी करुणा को जल तू बहा के

कर दे पावन हर एक मन का कोना

इतनी शक्ति हमें देना दाता,

मनका विश्वास कमजोर हो ना

हम चलें नेक रस्ते पे,

हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना।।

एक होमवर्क ऐसा भी .......

चेन्नई के एक स्कूल ने अपने बच्चों को छुट्टियों का जो एसाइनमेंट दिया वो पूरी दुनिया में वायरल हो रहा है। कारण बस इतना कि उसे बड़े सोच समझकर बन...